Saturday, December 06, 2008
Friday, September 26, 2008
Thursday, September 04, 2008
do cup chai...
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छाहोती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनीऔर दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वेआज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबलपर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समानेकी जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब नेछोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खालीथी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अबप्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभवथा बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई नाहाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमेंकी चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीरआवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदेंसबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारीनौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगहही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन परलागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पासमुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपनेबच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहरनिकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तयकरो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिनआपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक येसवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिनअपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।
क्या आपके पास मेरे लिए दो कप चाय का समय हैं ?
Tuesday, August 26, 2008
Tuesday, August 05, 2008
Tuesday, March 25, 2008
holi.....
इसबार की होली बंगाल में मनाने का मौका मिला..... बाकि सब जगह से यह हटके हैं........रस्ते-रस्ते गुलाल-अबीर और रंग....... मुझे मेरे मोहल्ले में घुसते ही वहाँ के बच्हो ने रंग की पिचकारी से हमला बोल दिया......और एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह थी बच्चों की फेरी ...गाते-बजाते अबीर रंग उराते लोगों को देख कर सच में लगता था की यह ही हैं -बसंत-ओ-उत्सव .......यह परम्परा शांतिनेकेतन से शुरू हुआ हैं और लगभग बंगाल के हर हिस्से पर यह ऐसे ही मनाया जाता हैं.....नीचे कुछ तस्वीरें हैं जो की मोहल्ले के बच्चों द्वारा निकाली गयी फेरी का हैं........
इसबार की होली बंगाल में मनाने का मौका मिला..... बाकि सब जगह से यह हटके हैं........रस्ते-रस्ते गुलाल-अबीर और रंग....... मुझे मेरे मोहल्ले में घुसते ही वहाँ के बच्हो ने रंग की पिचकारी से हमला बोल दिया......और एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह थी बच्चों की फेरी ...गाते-बजाते अबीर रंग उराते लोगों को देख कर सच में लगता था की यह ही हैं -बसंत-ओ-उत्सव .......यह परम्परा शांतिनेकेतन से शुरू हुआ हैं और लगभग बंगाल के हर हिस्से पर यह ऐसे ही मनाया जाता हैं.....नीचे कुछ तस्वीरें हैं जो की मोहल्ले के बच्चों द्वारा निकाली गयी फेरी का हैं........
Thursday, March 06, 2008
Monday, February 04, 2008
Sunday, February 03, 2008
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